आप अगर यहां तक पहुंचे हैं तो निश्चित रूप से आप जानना चाहेंगे की खिरगंगा का इतिहास क्या है?
खीरगंगा, भारत के कसोल, हिमाचल प्रदेश की पार्वती घाटी में स्थित एक लोकप्रिय ट्रैकिंग स्थल है। यह समुद्र तल से लगभग 2,960 मीटर (9,711 फीट) की ऊंचाई पर स्थित है। यह जगह अपनी प्राकृतिक सुंदरता, गर्म पानी के कुंड और आसपास के पहाड़ों के आश्चर्यजनक दृश्यों के लिए जानी जाती है। अगर हम खीरगंगा के इतिहास(History of kheerganga) की बात करें तो इसका इतिहास कई हजारों साल पुराना है। यहां के लोकल लोगों के बीच एक कथा प्रचलित है, जिसके बारे में हम आपको विस्तार पूर्वक बतायेंगे और आपको कहीं और जाने की आवश्यकता नहीं पडेगी।
खीरगंगा का इतिहास (History of kheerganga)
पौराणिक काल की बात है, जब भगवान शिव और माता पार्वती यह सुनिश्चित करना चाह रहे थे कि हमारे दोनों पुत्रों (गणेश और कार्तिकेय) में से कोन ज्यादा समझदार है और किसे क्या जिम्मेदारी देनी चाहिए। लेकिन, इसके लिए भगवान गणेश और भगवान कार्तिकेय (शिव और माता पार्वती के पुत्र) को एक चुनौती का सामना करना था कि कौन सबसे पहले संसार का चक्कर लगाता है। अब, भगवान कार्तिकेय ने तो पूरे संसार का चक्कर लगा लिया पर भगवान गणेश ने सिर्फ भगवान शिव और देवी पार्वती की परिक्रमा की। क्योंकी गणेश जी का मानना था कि माँ-बाप ही संसार होते हैं और इस संसार के रचयिता होने के कारण भी शिव और माता पार्वती की परिक्रमा करने का मतलब संसार का चक्कर लगाना ही है। इस बात से सभी देवी-देवता और शिव-पार्वती भगवान गणेश से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने गणेश जी को आशिर्वाद दिया कि अब से सभी देवी और देवताओं की पूजा से पहले भगवान गणेश की पूजा होगी अर्थात उन्हें प्रथम पूज्य देव की उपाधी दी गई।
गणेश जी वास्तव में जीत तो गए परंतु यह भगवान कार्तिकेय को सही नहीं लगा जिसके चलते वह नाराज हो गए और खीरगंगा की एक गुफा में जाकर ध्यान में बैठ गए। परंतु जब देवी पार्वती ने यह देखा कि उनका बड़ा बेटा बिना कुछ कहे ध्यान में चला गया तो वह चिंतित हो गयीं। जिसकी वजह से उन्होंने अपने बड़े बेटे की भोजन की पूर्ती के लिए यहां दूध की नदी बहा दी। जिसे दूधगंगा कहा गया
बाद में, जब पार्वती घाटी में भगवान कार्तिकेय का समय समाप्त हो गया तो वह सीधा भगवान शिव और माता पार्वती के पास गए और उनका आशीर्वाद लेते हुए कार्तिकेय जी ने उनसे कहा की भाई ने जो किया था वह सही था इसका मुझे ज्ञान हो गया है। जिसके चलते कार्तिकेय जी को देवताओं का सेनापती नियुक्त किया गया।
यह कथा यहां से नया मोड लेती है कि अब एक समस्या उत्पन्न हुई कि दूधगंगा का क्या किया जाए क्योंकी आने वाले समय में कलयुग में इसका दुरुपयोग किया जाएगा। इस समस्या को हल करने के लिए भगवान शिव ने ऋषि परशुराम जी को बुलाया क्योंकी इस समस्या का हल वही कर सकते थे, परन्तु क्रोध में और दूधगंगा पर एक नजर डालने को कहा। इसके बाद परशुराम जी तुरंत दूधगंगा की ओर चल पड़े और यहां पहुंचने के बाद यह चमत्कार स्वयं देखा। फिर उन्होंने यह सोचा की क्यों न इस दूधगंगा की खीर बनाई जाए। उन्होंने खीर (एक भारतीय व्यंजन) बनाने के लिए कुछ चावल और अन्य सामग्री एक बर्तन में डाली और दूध के लिए उन्होंने दूधगंगा के दूध का उपयोग किया। खीर बनके तैयार हुई, इससे पहले कि वह खीर दूसरे बर्तन में रख पाते उन्हें पीछे से किसी ने धक्का दिया और वह खीर दूधगंगा में गिर गयी। इससे परशुराम अत्यंत क्रोधित हो गये और वह उसे ढुंढने लगे जिसने उन्हें धक्का दिया। उन्होंने जब अपना क्रोध दिखाना शुरू कर दिया तब कुछ भी अनर्थ होने से पहले देवता वहां पहुंचे और उन्हें समझाने का प्रयत्न किया। फिर भगवान शिव वहां पहुंचे और परशुराम जी से गहराई से चिंतन अर्थात स्थिति और वास्तविकता की जाँच करने को कहा। फिर वह गहन ध्यान की अवस्था में चले गए। ऐंसा करने पर, वह स्पष्ट रूप से दूधगंगा की हँसती आवाज को सुन सकते थे। सामने एक चंचल छोटी लड़की प्रकट हुई। अब, यह स्पष्ट हुआ कि उस लडकी ने जानबूझकर यह किया लेकिन हल्के-फुल्के मजाक में। अब तो परशुराम जी को और अधिक क्रोध आ गया और उन्होंने दूधगंगा को श्राप दे दिया कि अब से तुम दूध की जगह पानी बनकर बहोगी और मेरे द्वारा बनाई जिस खीर का तुमने अपमान किया है उसी खीर के नाम से खीरगंगा के रुप में जानी जाओगी।
तब से दूधगंगा का नाम खीरगंगा पडा। आज भी देखा जा सकता है कि खीरगंगा के जल में मलाई जेसी कुछ चीज मिलती है और इसका जल भी दूध की तरह हल्का सा सफेद रहता है। यह जगह पर्यटक स्थल होने के साथ-साथ धार्मिक महत्व भी रखती है। जिसका हम सबको ध्यान रखना चाहिए।
तो केसी लगी आपको यह खीरगंगा की पौराणिक कथा हमें comment करके बताएं। अगर इस कथा या हमारे ब्लॉग में कोई कमी हो तो भी हमें बताएं ताकि हम सुधार कर सकें, धन्यवाद।